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आज न कोरोना, न क्रिकेट, न रूस-यूक्रेन, न चीन-पाकिस्तान। आज इंडिया में बस एक बात हो रही है..इलेक्शन रिजल्ट की।
उसमें भी सबसे ज्यादा उत्तर प्रदेश की, क्योंकि सियासत के हैवीवेट्स यहीं दंगल लड़ रहे हैं। नाम जुड़ा है योगी और मोदी का तो देश के साथ दुनिया की भी नजर यहीं है।
वोटों की गिनती शुरू होने के साथ ही रुझान भी आने शुरू हो गए हैं। शुरुआती रुझानों में भाजपा 11 सीटों पर आगे है। सपा 4 और बसपा एक सीट पर आगे चल रही है।
उत्तर प्रदेश चुनाव रिजल्ट अपडेट्स…
मुख्य चुनाव आयुक्त सुशील चंद्रा ने वाराणसी में EVM पर सवाल उठाए जाने पर बयान दिया। कहा कि ट्रेनिंग के लिए किया गया था। गलती वाराणसी के एडीएम की थी, जिसने राजनीतिक दलों को इस ड्रिल के बारे में जानकारी नहीं दी।
सटीक नतीजे, रोचक अंदाज में
दैनिक भास्कर ऐप पर पांचों राज्यों के चुनाव परिणाम हम न सिर्फ सबसे पहले लेकर आएंगे, बल्कि सबसे सटीक नतीजों के लिए आपको टीवी के जरूरत भी नहीं पड़ेगी। चुनाव नतीजों से लेकर हॉट सीटों की अहमियत और दिग्गजों की हार-जीत का लेखा-जोखा भी आप यहीं देख सकते हैं। नतीजों को लेकर हमने खास इलेक्शन रैप तैयार किया है। इसे यहां देखें…
8 पॉइंट में 61 दिन के सियासी समर का लेखा-जोखा
1. क्या कहता है यूपी का पोल ऑफ पोल्स, पिछले 4 में 3 सही साबित हुए
यूपी के 9 एग्जिट पोल में योगी को स्पष्ट बहुमत मिलता नजर आ रहा है। भाजपा को 250 सीटें मिलने का अनुमान है और सपा 135 तक सिमटती दिख रही है। ये भी जान लेना जरूरी है कि पिछले 20 साल में आए 4 एग्जिट पोल का क्या हुआ।
- 1- 2002 के 3 एग्जिट पोल में से 2 में सपा को सबसे बड़ी पार्टी बताया जा रहा था और एक में भाजपा को। सपा के लिए अनुमान करीब-करीब सही साबित हुए थे। चुनाव में उसे 143 सीटें मिली थीं। पर, भाजपा 100 से नीचे सिमट कर 88 पर आई थी। दूसरे नंबर की पार्टी बसपा थी, जिसे 98 सीटें मिली थीं।
- 2- 2007 में एग्जिट पोल्स कह रहे थे त्रिशंकु विधानसभा होगी। किसी भी पार्टी को 135 से ज्यादा सीटें नहीं दी गई थीं लेकिन, नतीजे एकदम उलट आए। मयावती की बसपा को 206 सीटों के साथ क्लियर मेंडेट मिला। सपा (97) दूसरे नंबर और भाजपा (51) तीसरे नंबर पर रही।
- 3- 2012 में पोल्स कह रहे थे कि मायावती के हाथ से सत्ता जाएगी। हुआ भी ऐसा ही। सपा ने 224 जीतकर सरकार बनाई। बसपा ने 80 सीटें जीतीं। तीसरे नंबर पर आई भाजपा को 47 सीटें मिलीं।
- 4- 2017 में 6 में से 4 एग्जिट पोल ने भाजपा को बहुमत दिया था। 200 तक सीटों की बात कही जा रही थी। ये पोल कुछ मायनों में सही तो कुछ मायनों में गलत साबित हुए। सरकार तो भाजपा की ही बनी पर सीटें अनुमान से कहीं ज्यादा आईं यानी 312।
- 2. 2017 में मोदी लहर में चमके फायर ब्रांड योगी
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2017 में मोदी लहर से भाजपा को बहुमत मिला। योगी ने 312 सीटें जीतीं। उत्तर प्रदेश के चुनावी इतिहास में ये दूसरी सबसे बड़ी जीत थी। 403 सीटों में से 77.41% सीटें भाजपा को मिली थीं। अविभाजित उत्तर प्रदेश में 1977 में हुए विधानसभा चुनाव में जनता दल को 352 सीटें मिली थीं। तब विधानसभा का साइज 425 सीटों का था और जनता दल को इसमें से 82.82% सीटें मिलीं थीं। यूपी में तीसरी सबसे बड़ी जीत कांग्रेस के नाम पर है, जब 1980 में उसने 425 में से 309 सीटें यानी 72.70% सीटों पर जीत दर्ज की थी।
3. पिछली बार हुई थी सबसे ज्यादा वोटिंग, सबसे कम 42 साल पहले
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार 60.31% वोटिंग हुई है। 2017 में ये आंकड़ा 61.28% था यानी इस बार करीब एक फीसदी वोट कम पड़े हैं। 2012 में 59.5% वोट डाले गए थे। अगर पिछले 11 चुनावों में यूपी की वोटिंग हिस्ट्री पर नजर डालें तो 2017 में ही सबसे अधिक मतदान हुआ था। 2022 की वोटिंग दूसरे नंबर पर है। सबसे कम वोटिंग की बात करें तो 1980 में 44.9% का आंकड़ा सबसे निचले पायदान पर है। इसके बाद 1985 में सबसे कम 45.6% वोट डाले गए थे। -
4. वोटिंग में बदलाव का असर, पिछली बार 1.2% बढ़ी तो भाजपा को 265 सीटों का फायदा
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इस बार वोट करीब एक फीसदी कम हुए हैं। वोटिंग में बदलाव उत्तर प्रदेश के चुनावों पर असर डालता है। 2017 में जब सपा को हटाकर भाजपा की सरकार बनी तो वोटिंग प्रतिशत 1.2% बढ़ा था। तब भाजपा को 265 सीटों का फायदा हुआ था। 2012 में जब मायावती की जगह अखिलेश ने चुनाव जीता तो ओवरऑल वोटिंग में करीब 12% का इजाफा हुआ था।
आगे का लेखा-जोखा जानने से पहले चर्चा कर लेते हैं उनकी, जिनके बिना यूपी में चुनाव पूरे नहीं होते। बाहुबलियों की। भास्कर ने चुनाव के दौरान यूपी के बाहुबलियों पर लगातार रिपोर्ट्स की हैं। जो बेहद दिलचस्प हैं।
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5. यूपी में 37 साल से किसी पार्टी की सरकार रिपीट नहीं हुई, 4 और राज्यों में यही ट्रेंड
37 साल से यूपी में किसी पार्टी की लगातार दूसरी बार सरकार नहीं बनी। 1985 में कांग्रेस लगातार दूसरी बार यहां चुनाव जीती थी। इस सरकार का टर्म पूरा होने के अगले करीब 19 सालों तक राज्य में हंग असेंबली रही। 2007 से हर 5 साल बाद सरकार बदली है। पहले मायावती फिर अखिलेश और फिर योगी सीएम बने। इस बार यदि फिर भाजपा की सरकार बनती है तो 37 साल में पहली बार ऐसा होगा। देश में कर्नाटक, उत्तराखंड, हिमाचल और राजस्थान में भी लंबे अरसे से ऐसा ही ट्रेंड है। -
6. चुनावी वादे और उनका हाल, भाजपा-सपा-कांग्रेस सभी पार्टियां इन्हें भूल जाती हैं भाजपा ने UP में 16 पेज का ‘लोक कल्याण संकल्प पत्र’ जारी किया है। इसमें 5वें पेज से 12वें तक घोषणाएं हैं। इन 7 पेज में 10 मुद्दों पर 130 ऐलान किए गए। इनमें लड़कियों को मुफ्त स्कूटी, महिलाओं को 2 LPG सिलेंडर, मुफ्त बिजली और लव जिहाद पर लगाम जैसे वादे किए गए हैं। अब जरा पिछले यानी 2017 के वादों की बात करें तो 28 जनवरी 2017 को भाजपा मेनिफेस्टो लाई थी। इसमें 10 विषयों पर करीब 100 वादे थे। भाजपा का दावा है कि सारे वादे पूरे हो गए। 7 बड़े ही जरूरी वादों का एनालिसिस किया तो पता चला कि 3 में 1% काम भी योगी सरकार में नहीं हुआ और 4 पर 10% से भी कम काम हो सका। (इस एनालिसिस को पूरा पढ़ने के लिए क्लिक करें…)
सपा ने वोटिंग से ठीक 40 घंटे पहले सपा मेनिफेस्टो का ऐलान किया। कुल 88 पेज, 22 विषय और 1000 से ज्यादा वादे। सबसे अहम वादों का एनालिसिस किया तो पता चला सवा करोड़ लैपटॉप देने का वादा किया है। जब सरकार थी तब 6 लाख दिए थे। 300 यूनिट बिजली मुफ्त का वादा, सरकार थी तो विभाग घाटे में था। स्कूलों को टेबल-कुर्सी से लैस करने की बात कही। जब सरकार थी तो 68 हजार स्कूल में बेंच नहीं थी।
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कांग्रेस ने वोटिंग से 18 घंटे पहले अपना मेनिफेस्टो जारी किया। वादा किया कि कोरोना प्रभावित परिवार को 25 हजार रुपए की मदद की जाएगी। जबकि, योगी सरकार 50 हजार रुपए की मदद पहले से कर रही है। ठीक इसी तरह वृद्धा और विधवा पेंशन 1000 करने की बात कही। योगी सरकार ने पेंशन को दिसंबर 2021 में ही 1000 कर दी है। दो लाख शिक्षकों की भर्ती का वादा किया, अभी खाली पद ही महज 73 हजार हैं।
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7. सत्ता के इस संघर्ष में सबसे बड़े सियासी सिपहसालार
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यूपी में नेताओं के बयान, पार्टियों की कैंपेनिंग, उनकी रणनीति कितना काम आएगी, ये तो नतीजों से साफ होगा। आप जान लीजिए उन चेहरों को जो सामने नहीं आए, लेकिन हर कदम-हर चाल के पीछे दिमाग उनका ही था। ये हैं पार्टियों के सिपहसालार, जिन्हें स्ट्रैटजी तैयार की और उसे जमीन पर उतारा। जैसे प्रियंका को किसने बताया कि ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ कैंपेन के पीछे थीं खुद प्रियंका, सचिन नायक और धीरज गुर्जर रहे।
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8. भास्कर डेमोक्रेसी वॉल: यूपी के युवाओं का झुकाव NOTA की तरफ
दैनिक भास्कर ने यूपी के 5 अलग-अलग शहरों में अपनी डेमोक्रेसी वॉल खड़ी की। इसके पीछे हमारा मकसद था कि चुनाव के दौरान युवाओं और आम लोगों को अपनी बात रखने का एक मौका मिल पाए। हम उन तक पहुंचे और वॉल पर लिखी उनकी बातों को एक-एक कर लाखों लोगों तक पहुंचाया भी। एक अहम बात जो इस डेमोक्रेसी वॉल के जरिए पता चली, वो ये कि युवाओं का झुकाव नोटा की तरफ ज्यादा है