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समाजवादी पार्टी अब इन सीटों पर खासतौर पर फोकस कर दिया है। कम मार्जिन से हारने वाली सीटें जीतने की रणनीति तो बन रही है पर चुनौती है कि कांटे की टक्कर में जीती इन सीटों को कैसे बरकरार रखा जाए। सपा को उम्मीद है कि इस बार पश्चिम में उसके रालोद के साथ गठबंधन से उसका वोट उसे ट्रांसफर होगा। साथ ही मध्य व पूर्वांचल में भी उसके साथ आए छोटे छोटे दल उसके वोट बैंक में इजाफा करेंगे।
समाजवादी पार्टी ने सहारनपुर नगर से जीते संजय गर्ग को फिर उम्मीदवार बनाया है। इसी तरह नजीबाबाद, सहसवान, कन्नौज, मटेरा, महमूदाबाद, नगीना सीटों पर इन्हीं सिटिंग विधायकों को उतारा है। सहसवान सीट जीते शरदवीर और हरदोई सीट पर जीते नितिन अग्रवाल अब भाजपाई होकर इन्हीं सीट पर किस्मत आजमाने की तैयारी में हैं।
शाहगंज सीट पर सपा ने पिछली बार भाजपा समर्थित सुभासपा को हराया था। अब ओम प्रकाश राजभर की पार्टी सुभासपा अब सपा के साथ गठबंधन में है। आजमगढ़, कन्नौज, बलिया, मैनपुरी जैसे इलाको में तो सपा का पुराना प्रभाव रहा है लेकिन पिछली बार रामगोविंद चौधरी बांसडीह से, संग्राम सिंह अतरौलिया से कांटे की टक्कर में जीत पाए थे।
समाजवादी पार्टी इस बार कई छोटे दलों के साथ सत्ता पर काबिज होने की कोशिश में लगी है। ऐसे में वह प्रत्याशियों के चयन में भी फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। उसकी कोशिश यह भी है कि सहयोगी दलों को नाराज किए बिना अपनी सीटों को बनाए रखा जाए।