Home Business news Electric Problem Ke Liye Coal Se Jyada Hum Responsible | बिजली संकट के लिए कोयला से अधिक हम जिम्मेदार

Electric Problem Ke Liye Coal Se Jyada Hum Responsible | बिजली संकट के लिए कोयला से अधिक हम जिम्मेदार

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रिन्युएबल एनर्जी में टारगेट से 45% पीछे नहीं रहते तो बिजली 68 गुना होती

कोयले की कमी से जब देश में बिजली संकट खड़ा हुआ तो सोलर और विंड एनर्जी, यानी रिन्युएबल की चर्चा ने फिर जोर पकड़ा। वैसे, भारत ने 2016 में ही टारगेट रखा था कि 2022 तक अक्षय ऊर्जा (रिन्युएबल एनर्जी) की क्षमता 1,75,000 मेगावाट तक पहुंचा दी जाए। लेकिन, हकीकत यह रही कि अप्रैल, 2022 तक भारत में सोलर व विंड एनर्जी की कुल क्षमता 96,000 मेगावाट ही हो सकी।

क्लाइमेट रिस्क होरिजोन ने भी इस साल के बिजली संकट पर रिपोर्ट में लिखा- ‘यदि भारत ने 2022 तक रिन्युएबल एनर्जी का अपना टारगेट हासिल कर लिया होता तो ऐसा नहीं होता।’ अप्रैल में 8 दिन 10 करोड़ यूनिट प्रति दिन की कमी से देश के ज्यादातर हिस्सों में जबरदस्त बिजली कट की खबरें आईं।

2022 में 175 गीगावाट रिन्युएबल एनर्जी का था टारगेट

रिपोर्ट के मुताबिक, यदि वह लक्ष्य हासिल हो गया होता तो संकट के दिनों में रोजाना 683 करोड़ यूनिट, यानी 68 गुना ज्यादा बिजली उपलब्ध होती। ऊपर से, 44.2 लाख टन कोयला बचा भी रह जाता। क्लाइमेट रिस्क होरिजोन के आशीष फर्नांडीस ने बताया कि देश में रिन्युएबल एनर्जी से मिलने वाली बिजली की आपूर्ति कुल आपूर्ति में महज 11% है।

पिछले साल हमने 13 गीगावाट सोलर एनर्जी इंस्टालेशन विकसित किया, जबकि 2022 में 175 गीगावाट का टारगेट हासिल करने के लिए इंस्टालेशन की यह गति 2016 में ही होनी चाहिए थी। अब 2030 के 500 गीगावाट रिन्युएबल एनर्जी का टारगेट हासिल करना है तो 2022 से ही सालाना 40 गीगावाट प्लस का सोलर और विंड एनर्जी इंस्टालेशन लगाना होगा।

लाभ देने वाली नीतियां सभी राज्यों में लागू हों रिन्युएबल एनर्जी एक्सपर्ट अभिषेक राज ने बताया कि सभी राज्यों में अक्षय ऊर्जा को लेकर नीतियां एक जैसी नहीं हैं। इस कारण, दक्षिणी व पश्चिमी राज्य काफी अच्छा कर रहे हैं और बाकी नहीं। इसके अलावा, नीतिगत स्थिरता की कमी है। जैसे आंध्र में सरकार बदली तो उसने पिछली सरकार के पावर पर्चेज एग्रीमेंट (पीपीए) रद्द कर दिए। इससे अंतर्राष्ट्रीय निवेशकों की रुचि घट जाती है।

डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी डिस्कॉम की ओर जेनरेशन कंपनी को भुगतान में काफी देरी होना भी एक बड़ा रोड़ा रहा। अच्छा प्रदर्शन करने वाले राज्यों की डिस्कॉम भी भारी कर्जे में है। दिल्ली की तरह रूफटॉप उत्पादित बिजली को बेचने की छूट और आंध्र की तर्ज पर अक्षय ऊर्जा संयंत्र के साथ बैटरी स्टोरेज कैपेसिटी प्रोजेक्ट लगाए जाने से फायदा होगा।

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