Home Daily News Aaj khulengey Gangotri- yamunotri dham ke doors; 15 danger zone pass kar poach rahe Devotees | आज खुलेंगे गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट; 15 डैंजर जोन पार कर पहुंच रहे श्रद्धालु

Aaj khulengey Gangotri- yamunotri dham ke doors; 15 danger zone pass kar poach rahe Devotees | आज खुलेंगे गंगोत्री-यमुनोत्री धाम के कपाट; 15 डैंजर जोन पार कर पहुंच रहे श्रद्धालु

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आज से गंगोत्री और यमुनोत्री धाम के कपाट श्रद्धालुओं के लिए खुल रहे हैं। दिन में 11.15 बजे गंगोत्री धाम और दोपहर 12.15 बजे यमुनोत्री धाम के कपाट पूरे विधि विधान के साथ श्रद्धालुओं के लिए खोल दिए जाएंगे। इसके साथ ही आधिकारिक रूप से चार धाम यात्रा शुरू हो जाएगी। दोनों ही धामों के लिए अब तक 50 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने रजिस्ट्रेशन कराए हैं।

हम ऋषिकेश से गंगोत्री के लिए सुबह ही निकल पड़े। शहर के जाम से जूझते हुए हम बाहर निकले। शहर से निकलते ही डबल लेन की अच्छी सड़कें और खूबसूरत वादियों ने हमारा स्वागत किया। करीब सवा दो घंटे बाद हम चंबा टनल पहुंचे।

ऑल वेदर प्रोजेक्ट के तहत चंबा में कुछ समय पहले ही ये शानदार टनल खोली गई है। इस टनल के खुल जाने से यहां लगने वाले जाम से लोगों को निजात मिल गई है। यहां रुक कर लोग सेल्फी लेते नजर आए।

लैंडस्लाइड का मलबा हटाने का काम जारी
टनल पार करने के कुछ देर बाद ही हमारा सामना डेंजर जोन से हुआ। पिछले मॉनसून में उत्तराखंड में जगह- जगह लैंडस्लाइड हुई थी, बड़े- बड़े पत्थर सड़कों पर आ गिरे थे। उनका मलबा अब तक यहां मौजूद है। रास्ते में बड़े बड़े पत्थरों को हटाने का काम अब भी चल ही रहा है।

चंबा से धरासू बैंड के बीच लगभग 80 किलोमीटर की सड़क काफी खराब हालत में है। जगह-जगह JCB से मलबा हटाने का काम जारी है। इसके चलते बीच-बीच में कई जगहों पर जाम लग जाता है।

यहां दो तरफ से खतरा है। पहाड़ों से अब भी पत्थर गिरने की घटनाएं होती रहती हैं। वहीं, दूसरी तरफ गहरी खाई है। आगे चलने वाली गाड़ियों से धूल का गुबार बन जाता है और सामने कुछ दिखाई नहीं देता। इससे हादसे का खतरा बना रहता है।

इस रोड पर आप 35 की रफ्तार से तेज नहीं चल पाएंगे। चंबा से धरासू के बीच 15 से ज्यादा डेंजर जोन पड़ते हैं।

कंसीसौंड़ के पास रोमलगांव धार में भूस्खलन जोन है। चिन्यालीसौंड़ में नगुण के पास दूसरा बड़ा डेंजर जोन है। सरकार का दावा था कि यात्रा शुरू होने से पहले मलबा हटा लिया जाएगा, लेकिन ये काम अब भी जारी है।

धरासू से अलग होते हैं गंगोत्री- यमुनोत्री के रास्ते
हम सुबह 7 बजे के चले और दोपहर करीब 1 बजे धरासू पहुंचे। ये वो जगह है जहां से यमुनोत्री और गंगोत्री के लिए रास्ते अलग होते हैं। यहीं एक ढाबे पर हमने लंच किया। ढाबे वाले ने हमें बताया कि कोरोना की वजह से दो साल बहुत बुरे बीते। हम बरबाद हो गए। अब लोग फिर से आने लगे हैं तो उम्मीद बंधी है। बीते दो साल में जो नुकसान हमें हुआ है, उसकी भरपाई आसान नहीं है। बस कोरोना फिर से न आए।

धधकने लगे हैं जंगल, हर तरफ धुआं ही धुआं

ऋषिकेश से ऊपर बढ़ते ही हमारा सामना जंगलों में लगी आग से हुआ। गर्मी में सूखी हवाओं और बढ़ती तपिश की वजह से जंगलों में आग लगने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। कई दिनों तक इन पर काबू नहीं पाया जा सका है।

धरासू बैंड से हम आगे बढ़े तो उत्तरकाशी तक हल्की गर्मी महसूस हुई। उत्तरकाशी के बाद गंगोत्री तक सिंगल लेन रोड ही है। भटवाड़ी के बाद मौसम में ठंड का अहसास होने लगा। यहां बादल आपके करीब दिखते हैं। उनके बीच से गुजरना अलग ही रोमांच पैदा करता है।

साढ़े तीन बजे हम भटवाड़ी पहुंचे। वहां चाय की चार-पांच दुकानें मिलीं, जिन पर ज्यादा चहल-पहल नहीं थी। कुछ स्थानीय लोग ही थे, जो चाय पी रहे थे और बातें कर रहे थे।

ऋषिकेश से 10 घंटे में गंगोत्री
शाम लगभग 5 बजे हम गंगोत्री पहुंचे। यहां सभी लोग स्वेटर, जैकेट और टोपी में नजर आ रहे थे। तापमान 5-6 डिग्री के आसपास था। गंगोत्री धाम के मुख्य गेट के बाहर ही लोगों ने गाड़ियां पार्क कर रखी थीं। वहां सड़क मरम्मत का काम चल रहा था।

यहां एक छोटा सा बाजार है, जिसमें हर तरह की दुकानें हैं। उसी बाजार में आपको ठहरने के लिए होटल भी मिलते हैं। ज्यादा चहल-पहल नहीं होने से अभी ज्यादातर होटल खाली पड़े हैं। यहां रात में गलनभरी ठंड है। देशभर में बिजली कटौती का असर यहां भी दिख रहा है। पिछले कई दिनों से दिन में बिजली कटती है।

गंगोत्री धाम से निकलती हैं दो नदियां
गंगोत्री से दो नदियां निकलती हैं। एक, गोमुख से निकलने वाली भागीरथी नदी और दूसरी केदार गंगा, जिसका उद्गम क्षेत्र केदारताल है। गंगोत्री धाम से करीब 300 मीटर आगे जाकर केदार गंगा भागीरथी नदी में मिल जाती है। 

सवाई मान सिंह ने बनवाया था गंगोत्री मंदिर

गंगोत्री धाम के निर्माण की शुरुआत नेपाल के एक राजा ने की थी, लेकिन स्थानीय पुजारियों के विरोध की वजह से उन्हें हाथ खींचना पड़ा। मंदिर के पुजारी रहे मनोहर सेमवाल ने बताया 18वीं सदी में नेपाल से आए कुछ आक्रांता उत्तराखंड के इलाके में लूटपाट करते थे। इस वजह से लोगों ने नेपाल के राजा का विरोध किया। आगे चलकर जयपुर के राजा सवाई मान सिंह ने गंगोत्री धाम का निर्माण पूरा कराया था। उसके बाद टिहरी के राजा ने भी मंदिर निर्माण में मदद की थी।

भगीरथ की तपस्थली : गंगोत्री मंदिर के ठीक सामने राजा भगीरथ की तपोस्थली है। यहां भगीरथ ने तपस्या करके गंगा को स्वर्ग से धरती पर उतारा था।

गौरी कुंड : गौरी कुंड को लेकर ये मान्यता है कि राजा भगीरथ की कड़ी तपस्या के बाद मां गंगा धरती पर आईं, लेक‌िन यहां गंगा खुद भगवान श‌िव की पर‌िक्रमा करती हैं।

सूर्य कुंड: गौरी कुंड के बगल में ही सूर्य कुंड है। सूर्य की किरणें सबसे पहले यहीं पड़ती है। इसलिए यहां का नाम सूर्य कुंड पड़ा।

पांडव गुफा : मान्यता है कि महाभारत काल में पांडवों ने अपने पितरों के उद्धार के लिए चार धाम की यात्रा की थी। इसी यात्रा के दौरान एक गुफा में उन्होंने विश्राम किया था। तभी से इस गुफा का नाम पांडव गुफा पड़ गया। ये गंगोत्री मंदिर से दो किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यमुनोत्री धाम में 6 किलोमीटर चलना होगा पैदल

उत्तरकाशी में पड़ने वाले इस यमुनोत्री धाम के कपाट 3 मई को अक्षय तृतीया के दिन 12.15 बजे खुलेंगे। यमुनोत्री पहुंचने के लिए दो रास्ते हैं। पहला, ऋषिकेश- देहरादून- मसूरी- यमुना ब्रिज- बड़कोट- यमुनोत्री और दूसरा, ऋषिकेश- नरेंद्र नगर- चंबा रोड- धरासू- बड़कोट- यमुनोत्री। दोनों ही रास्तों से जानकी चट्‌टी तक गाड़ी से पहुंच सकते हैं। धाम तक पहुंचने के लिए 6 किलोमीटर बिना गाड़ी के जाना होता है। जानकी चट्टी से पिट्‌ठू, खच्चर या पालकी के जरिए यमुनोत्री मंदिर तक पहुंच सकते हैं। यमुनोत्री जाने के लिए सुबह जल्दी निकलें ताकि शाम तक जानकी चट्‌टी लौट आएं, क्योंकि यमुनोत्री में ठहरने के इंतजाम नहीं हैं।

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