Home Politics News Prachand bahumat bana ne waali sarkaar Mayawati ke pass ab sirf ek vidhayak, 17% kam hua vote share | प्रचंड बहुमत की सरकार मायावती के पास अब सिर्फ एक विधायक, 17% कम हुआ वोट शेयर

Prachand bahumat bana ne waali sarkaar Mayawati ke pass ab sirf ek vidhayak, 17% kam hua vote share | प्रचंड बहुमत की सरकार मायावती के पास अब सिर्फ एक विधायक, 17% कम हुआ वोट शेयर

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उत्तर प्रदेश में 2007 के विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली बसपा के पास आज सिर्फ एक विधायक है। 2007 में मायावती की पार्टी को 30 फीसदी वोट मिला था, जो 2022 में घटकर 13 फीसदी हो गया। इतना ही नहीं इस चुनाव में बसपा के 290 प्रत्याशी तो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए। ऐसा क्या हुआ जो मायावती सियासी रूप से राज्य में हाशिए पर चली गईं। हम आपको इसके पीछे की 5 वजह बताएंगे।

1. दिग्गज नेताओं ने एक-एक कर छोड़ा साथ
2007 से 2012… ये वो समय है जब प्रदेश में बसपा की पूर्ण बहुमत की सरकार थी। हर जाति-वर्ग के नेताओं की एक लंबी फौज बसपा में थी। 2014 लोकसभा चुनाव तक स्थिति ठीक थी, लेकिन जैसे ही केन्द्र में मोदी सरकार आई, 80 लोकसभा सीटों वाले राज्य में बसपा की सीटें शून्य हुईं। बसपा नेताओं का पार्टी से मोहभंग होने लगा। दिग्गज बृजेश पाठक, स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे नेताओं की राहें बसपा से जुदा हो गईं। ये सिलसिला 2022 तक लगातार चला। 2017 में 19 विधायकों वाली बसपा 2022 चुनाव आते-आते अपने 11 विधायकों को खो चुकी थी।

2. दलित-मुस्लिम का साथ छूटा
2007 में सोशल इंजीनियरिंग फॉर्मूला (दलित-मुस्लिम-ब्राह्मण) कामयाब रहा था। इसी फॉर्मूले ने मायावती को यूपी का चौथी बार मुख्यमंत्री बनाया था। हालांकि, 2014 के लोकसभा चुनाव में दलित वोटर्स में सेंधमारी करने में भाजपा को कामयाबी मिली और बसपा को एक भी सीट नहीं मिली। 2019 में मायावती ने सपा से गठबंधन किया तो दलितों में नाराजगी और बढ़ी। 2022 विधानसभा चुनाव में तो दलित रुठ ही गए। इतना ही नहीं मुस्लिमों ने भी बसपा के बजाय सपा का साथ दिया।

3. युवाओं-महिलाओं पर फोकस नहीं
मायावती ने आकाश आनंद को भले ही 2019 से आगे कर दिया था लेकिन आकाश आनंद भी 2022 में कोई कमाल नहीं दिखा पाए। वो युवाओं को बसपा से जोड़ने में नाकाम रहे। मायावती ने चुनाव में सिर्फ 21 महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया। खुद महिला होकर वह महिलाओं को अपनी पार्टी से जोड़ नहीं सकीं।

4. सुरक्षित सीट पर बसपा का प्रदर्शन
2017 में बसपा 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई।इस बार वोट प्रतिशत 13 रह गया और एक सीट ही हासिल कर पाई। यहां तक की आरक्षित 86 सीटों पर भी बसपा का लगातार प्रदर्शन खराब हो रहा है। 2007 में 62 सुरक्षित सीटों पर कब्जा जमाने वाली बसपा इस बार एक भी ऐसी सीट पर जीत दर्ज नहीं करा सकी। पिछले चुनाव में जहां दो सुरक्षित सीटें पार्टी को मिली थीं। वहीं, 2012 के चुनाव में 17, 2002 में 21, 1996 में 22, 1993 में 24 सीटों पर दलितों के दम पर ही बसपा का परचम लहराया था।

5. सोशल मीडिया पर सक्रियता नहीं
मायावती भले ही हर मुद्दे पर ट्वीट करती रहती हों लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी पार्टी की सक्रियता बेहद कम है। भाजपा ने फर्क साफ है जैसा कैंपेन चलाया तो सपा ने अखिलेश आ रहे हैं। कांग्रेस का लड़की हूं लड़ सकती हूं थीम भी लोगों का ध्यान खींचने में कामयाब रहा लेकिन मायावती की पार्टी ना ही ऐसा कोई कैंपेन चला पाई और ना ही मायावती की इमेज को सोशल मीडिया पर मजबूती से पेश कर पाई।

मायावती के बाद की सेकेंड लाइन देखिए तो सतीश चन्द्र मिश्रा के अलावा कोई दूसरा चेहरा नजर नहीं आता। बसपा के सामने कैडर को मजबूत करना, नई लीडरशिप डेवलप करना, छिटके हुए दलित वोटर्स को वापस पार्टी से जोड़ना, ब्राह्मणों और मुस्लिमों को फिर से जोड़ना, युवाओं और महिलाओं का विश्वास हासिल करने जैसी तमाम चुनौतियां हैं। मायावती आम तौर पर जिलों का दौरा नहीं करती। वो पदाधिकारियों को लखनऊ बुलाती हैं और वहीं उनसे मुलाकात करती हैं। अब मायावती को नए सिरे से सोचना होगा।

और पढ़े https://www.starnewshindi.com/2022/03/assembly-me-legislators-me-hua-jhagra.html

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