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नई दिल्ली। हनुमान जयंती पर जहांगीरपुरी इलाके में हुई हिंसा के आठ आरोपियों को अदालत ने जमानत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने पुलिस के रवैये पर सख्त टिप्पणी की। कहा कि इस घटना में पुलिस ही कटघरे में खड़ी नजर आ रही है। वह हिंसा को नहीं रोक पाई।
रोहिणी स्थित विशेष न्यायाधीश गगनदीप सिंह की अदालत ने आदेश में कहा कि पुलिस की प्राथमिकी ही बता रही है कि स्थानीय पुलिस का नेतृत्व इंस्पेक्टर राजीव रंजन कर रहे थे। पुलिस उपायुक्त (रिजर्व) खुद बगैर अनुमति लिए निकाले जा रहे इस जुलूस को रोकने की बजाय इसके साथ सुरक्षा देते हुए चल रहे थे, जबकि उन्हें जुलूस को वहीं रोक देना चाहिए था। भीड़ को भी हटाया जाना चाहिए था, जिससे घटना से बचा जा सकता था।
अदालत ने आदेश की प्रति पुलिस आयुक्त को भेजने के निर्देश देते हुए कहा कि प्रथमदृष्टया मामला स्थानीय पुलिस को अवैध जुलूस को रोकने में विफलता दर्शाता है। ऐसा लगता है कि पुलिस के वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की ओर से अनुमति लेने से संबंधित तथ्य को दरकिनार कर दिया गया था। इस संबंध में संबंधित अधिकारियों के दायित्व तय किए जाने की जरूरत है, ताकि भविष्य में ऐसी घटना ना हो। घटना में दायित्व तय होने के लिए पुलिस की भूमिका की जांच होनी चाहिए।
पुलिस की सुरक्षा में निकला था अवैध जुलूस: पुलिस ने अदालत को बताया कि हनुमान जयंती के दिन16 अप्रैल को दो जुलूस के निकालने की इजाजत ली गई थी, जबकि तीसरा जुलूस निकालने की अनुमति नहीं ली गई। हालांकि, पुलिसकर्मी तीसरे जुलूस को भी सुरक्षा दे रहे थे। इसी तीसरे जुलूस के कारण हिंसा हुई थी।
शांति व्यवस्था बनाए रखना प्रमुख प्राथिमकता: डीसीपी उषा रंगनानी ने कहा कि पुलिस की प्रमुख प्राथमिकता शांति व्यवस्था बनाया रखना है। इसलिए शोभायात्रा के दौरान पर्याप्त संख्या में पुलिस बल मौजूद था। भीड़ को तितर बितर करने पर कानून-व्यवस्था के बिगड़ने का खतरा था। पुलिस ने न्यूनतम संभव समय में हिंसा को काबू किया। पुलिस ने अदालत को बताया था कि घटना में आठ पुलिसकर्मी जख्मी हुए थे।
जहांगीरपुरी हिंसा के बाद शांति की अपील करता आरोपी तबरेज खान। ● फाइल फोटो