Home Daily News 15 years ka Mudassir namaz padhne gaya, phir wapis nhi aaya; Maa ne kaha mera beta saheed ho gaya | 15 साल का मुदस्सिर नमाज़ पढ़ने गया, फिर वापिस नहीं लौटा; माँ ने कहा मेरा बेटा शहीद हो गया

15 years ka Mudassir namaz padhne gaya, phir wapis nhi aaya; Maa ne kaha mera beta saheed ho gaya | 15 साल का मुदस्सिर नमाज़ पढ़ने गया, फिर वापिस नहीं लौटा; माँ ने कहा मेरा बेटा शहीद हो गया

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मां बोली- मुझे मेरे बेटे की मौत पर गुस्सा नहीं गर्व है, वो इस्लाम के लिए शहीद हुआ

मुझे मेरे बेटे की मौत का गुस्सा नहीं है। वो शहीद हो गया है। हमारे हुजूर पाक सल्ल्लाहुवसल्लम हमारे दिल में बसते हैं और जो दिल में बसते हैं, उनके लिए हम सीने पर गोली खाने के लिए तैयार हैं। इसे मौत नहीं कहते हैं, इसे शहादत कहते हैं। शहीद हुआ बच्चा अच्छा होता है।’

ये शब्द है रांची हिंसा में मारे गए 15 साल के लड़के मुदस्सिर की अम्मी निखत परवीन के। मुदस्सिर के अलावा 21 साल के साहिल की भी मौत इसी हिंसा के दौरान गोली लगने से हुई है। हालांकि, अब तक ये साफ नहीं है कि ये मौत पुलिस की गोली लगने से हुई है या फिर किसी दूसरी बंदूक से निकली गोली से। लेकिन जिन दोनों मुस्लिम लड़कों को गोली लगी वो निहायत ही गरीब घर से आते थे, साहिल ऑटो वाले का बेटा था तो वहीं मुदस्सिर के अब्बा सब्जी-फल का ठेला लगाते थे।

‘मैट्रिक का रिजल्ट देखे बिना ही मर गया मुदस्सिर’

रांची का हिंदपीढ़ी मोहल्ला। यही वो इलाका है जहां 10 जून शुक्रवार को हिंसा, उपद्रव और आगजनी हुई। संकरी गलियों से होते हुए हम पहुंचे मुदस्सिर के घर। वैसे घर कहना ठीक नहीं होगा, बजबजाती नाली के किनारे से होते हुए टिन के कमजोर से दरवाजे से अंदर दाखिल हुए तो सामने एक छोटा सा अधपक्का कमरा। मजमा लगा हुआ है। आंगन में मुर्गियां नाच रही हैं और सन्नाटे को तोड़ती मुर्गों की बांग। लाल रंग की टेंट वाली कुर्सियों पर कुछ मर्द और साथ में कुछ बच्चे बैठे हुए हैं। ये बच्चे मुदस्सिर के साथ पढ़ने वाले दोस्त हैं।

उनमें से एक बोला- ‘अबे हम मरबू ना बे, तो पूरा रांची जाने..’ (जब मैं मरूंगा तो पूरां रांची शहर जानेगा) मुदस्सिर हमेशा ये बोलता रहता था। दोस्त बताते हैं कि मुदस्सिर पढ़ाई में होशियार था, कंप्यूटर की क्लास भी अलग से करता था। अब्बा फल-सब्जी का ठेला लगाते थे, उसमें भी मदद करता था। दोस्त बताते हैं कि एक मुदस्सिर मर गया है, लेकिन अब इस मोहल्ले का हर लड़का मुदस्सिर बनेगा और जरूरत पड़ेगी तो शहादत भी देगा। हमने जैसे ही अपना कैमरा निकाला तो मुदस्सिर का हर दोस्त अपने चेहरे छिपाने लगा। बोले- हमारा फोटो मत लीजिए, 12 हजार लोगों पर FIR हुई है। रात में यहां पुलिस चक्कर लगा रही है। हमारा चेहरा आएगा तो हमको ही उठा लिया जाएगा। 

मृतक मुदस्सिर की मां निखत परवीन इतना रो चुकी हैं कि अब आंखों के आंसू सूख चुके हैं, आंखें

ठीक से खोली नहीं जा रहीं और बार-बार बिस्तर पर लुढ़क जा रही हैं। ऐसा हो भी क्यों ना, क्योंकि मुदस्सिर, निखत की कोख से जन्मा इकलौता लाल था। जब हम उनसे बात करने पहुंचे तो परिवार वालों ने चेताया कि ‘ज्यादा देर बात मत कीजिएगा, बार-बार मां बेहोश हो जा रही हैं। दो दिन से खाना-पानी की सुध तक नहीं है।’

लाल रंग की सलवार पहने हुए निखत चारपाई पर लेटी थीं और कुछ महिलाएं उन्हें घेरे हुए थीं। सिर पर पक्की छत नहीं थी, प्लास्टिक की शीट से कमरा ढका हुआ था, जो तेज हवा के झोंके से बार-बार उड़ रहा था। हमें देखकर वो ढांढस बांधकर उठीं और बगल में बैठी महिला के कंधे पर सिर रख दिया।

‘मेरा बाबू निहत्था था, फिर उसे गोली क्यों मारी गई’

रुंधे हुए गले से मुदस्सिर की मां निखत बोलीं- ‘मेरे बेटे की मौत की जिम्मेदार सरकार है। सड़क पर क्या हो रहा था, सबके सामने है, सभी को पता है। जिसके कारण मेरा बेटा मरा है, उसकी भी मौत होना चाहिए। बेटे ने हाल में ही मैट्रिक का एग्जाम दिया था, दो दिन बाद उसका रिजल्ट आने वाला था। कंप्यूटर का क्लास करता था। पूरी बस्ती में बच्चे, बूढ़े जवान उससे मोहब्बत करते थे। जिसे सब प्यार करें, ऐसा बच्चा कैसा होगा, आप समझ सकते हैं।

मेरा बच्चा गुनहगार नहीं था। कभी उसकी किसी से झगड़ा, लड़ाई नहीं हुई। तब उस 15 साल के बच्चे को गोली क्यों मार दी गई। अगर मेरे बाबू ने ईंट-पत्थर, तलवार, लाठी चलाई होती, तब भी मैं मानती वह गलत था और गोली मार दी गई, लेकिन वो निहत्था था।’

‘10 जून को हादसा हुआ, अब तक FIR की कॉपी तक नहीं मिली’

घर पर पता चला कि मुदस्सिर के अब्बा और बड़े पापा पुलिस थाने में FIR लिखवाने के लिए दर-दर भटक रहे हैं। डेली मार्केट पुलिस थाने के बाहर दोनों 12 जून को सुबह से ही दरख्वास्त कर रहे थे कि उनके बेटे की मौत की FIR लिख लीजिए, लेकिन हर कोई थोड़ी देर बाद आना, 1-2 घंटे बाद आना कहकर टाल रहा था।

मृतक मुदस्सिर के बड़े पापा यानी ताऊ मोहम्मद शाहिद बताते हैं कि ‘15 साल का मुदस्सिर अपने पिता के फल-सब्जी का ठेला लगाने में मदद करता था। जिस दिन हिंसा हुई वो अपने पिता के साथ ही डेली मार्केट वाली रोड पर फल के ठेले के साथ था। जब बड़ी भीड़ आई, तो मुदस्सिर भीड़ में शामिल हो गया। थोड़ी देर में मंदिर और पुलिस की तरफ से गोलीबारी होने लगी। मुदस्सिर को गोली लगी और वो गिर गया। हमारे बच्चे को इंसाफ मिलना चाहिए। जिसने भी उसे गोली मारी हो उसे सजा दी जानी चाहिए।’

चार भाई-बहनों का सहारा था साहिल

संकट मोचन मंदिर से सिर्फ करीब 900 मीटर की दूरी पर है 21 साल के साहिल का घर। मुदस्सिर की तरह साहिल गरीब तबके से था। पिता ऑटो चलाते हैं तो मैट्रिक तक जैसे-तैसे पढ़ाई करके, पास के ही न्यू मार्केट की मोबाइल की दुकान में नौकरी शुरू कर दी। यूं ही कोई 10-12 हजार रुपए की कमाई हो जाती। 4 भाई-बहनों में साहिल ही घर का मुख्य कमाने वाला था। घर में बीमार अम्मी और अब्बू।

एक दिन पहले ही मां के पेट का ऑपरेशन हुआ था और दूसरे दिन बेटे की मौत की खबर सुनने को मिली। मुदस्सिर की मां की तरह साहिल की मां भी अपने बेटे को शहीद ही मानती हैं। जिस दिन हम साहिल के घर पहुंचे उस दिन उसका जनाजा उठाया जाना था। घर और आस-पड़ोस सभी जगह लोग गुस्से में थे, बात नहीं करना चाहते थे। मौके को भांपते हुए हमने तय किया कि हम दूसरे दिन उनके घर जाएंगे।

‘जुमे की नमाज के बाद घर आकर खाना खिलाया, नहीं पता था कि आखिरी बार खिला रही हूं’

साहिल की मां सोनी परवीन का भी रो-रोकर बुरा हाल है। अब इतने आंसू बहा चुकी हैं कि आंखें सूख गई हैं। चीख-चीखकर गला बैठ गया है। वो कहती हैं, ‘साहिल 5 वक्त का नमाजी था। कभी किसी से झगड़ा नहीं हुआ। सुबह उठकर मोबाइल की दुकान पर काम करने जाता और शाम को वापस आ जाता था। वही घर चलाया करता था।’

‘जुमे के दिन नहाने के बाद नमाज पढ़ने गया था। उसके बाद घर आया, ढाई बजे खाना खाया और टोपी पहनकर काम पर चला गया। चार बजे के आसपास खबर आई की उसको गोली लग गई। मेरी आखिरी बातचीत खाने के वक्त हुई थी। नहीं पता था कि अब जाएगा तो वापस सीधे लाश ही आएगी। वो दंगा करने नहीं गया था, वो नौकरी पर गया था। गरीब को दिनभर नौकरी मजदूरी करने के बीच प्रदर्शन करने का टाइम नहीं होता है। साहिल को पुलिस ने गोली मारी है।’

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